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स्त्री शिक्षा का महत्व – क्यों है बढ़ते भारत को स्त्री शिक्षा की जरुरत

क्या आप जानते है स्त्री शिक्षा का महत्व?


नारी शिक्षा आवश्यकता, पहले भी स्त्रियाँ पुरुषों के समान शिक्षा प्राप्त करती थीं। वह अपनी विद्वता और संस्कृतियों के लिए बहुत प्रसिद्धि और यश प्राप्त करती थीं। लेकिन समय के साथ-साथ समाज में पुरुषवादी मानसिकता अपनी जड़ें जमाती चली गई और स्त्रियों को दबाया-कुचला जाने लगा।

हाल के वर्षों में समाज में एक जागृति आई है। वैचारिक स्वतंत्रता ने सामाजिक पुरुषवादी सोच की जड़ता को झकझोर डाला है और लोग स्त्री शिक्षा के महत्व को समझने लगे हैं। हालांकि अभी भी कुछ लोग हैं जो मानते हैं कि स्त्रियों का कार्यक्षेत्र घर की परिधि के भीतर ही होना चाहिए और स्त्री शिक्षा लाभ से अधिक हानि देती है। फिर भी, इन नकारात्मक सोचों को दरकिनार कर स्त्री शिक्षा दर दिनोंदिन बढ़ रही है। सह शिक्षा के साथ-साथ देश भर में लड़कियों की शिक्षा के लिए सैकड़ों अलग विद्यालय और महाविद्यालय भी खुले हैं, जिनमें हजारों लड़कियाँ पढ़ती हैं।

स्त्री शिक्षा का महत्व
स्त्री शिक्षा का महत्व

कहते हैं, एक पुरुष को पढ़ाने से एक व्यक्ति शिक्षित होता है, जबकि अगर एक स्त्री को शिक्षा दी जाए तो पूरा परिवार शिक्षित होता है। स्त्री परिवार की धुरी होती है। वह माँ होती है। एक शिक्षित माँ अपने बच्चों में शिक्षा और संस्कार तो देती ही है, उनके स्वास्थ्य का भी बेहतर ध्यान रखती है। शिक्षित स्त्री घर-परिवार का प्रबंधन अधिक कुशलतापूर्वक कर सकती है, आय-अर्जन तथा अन्य कामों के मामले में पति का हाथ बँटाती है, अपने अधिकारों और दायित्वों को बेहतर रूप से समझती है और समाज में फैली कई बुराइयों के विरोध में खड़ी हो सकती है।

अब सवाल ये पैदा होता है कि उनके लिए सहशिक्षा का वातावरण बेहतर है या अलग शिक्षा का। कई अभिभावक सहशिक्षा का विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि लड़कियों को लड़कों से इतना घुलना-मिलना सही नहीं है। वह अपनी जगह सही हो सकते हैं, लेकिन अब वह समय नहीं, जब लड़कियों को घर के भीतर ही रहना होता था। अब उन्हें किसी न किसी काम से बाहर तो निकलना पड़ता ही है। ऐसे में लड़कों से संपर्क तो कहीं भी हो सकता है। अगर बचपन से ही उन्हें लड़कों से दूर-दूर रखा जाए तो वह अव्यावहारिक तथा अतिसंवेदनशील होने के साथ ही साथ आत्मविश्वासहीन भी हो जाएँगी। इसके अलावे,  उन्हें लड़कों की प्रकृति की पहचान नहीं हो पाएगी, जो उनके लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती है।

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सहशिक्षा उन्हें लड़कों के स्वभाव से परिचित कराती है, जो उनके आगे के जीवन के लिए जरूरी है। साथ ही, उनमें लड़कों से प्रतियोगिता तथा मित्रता की भावना भी जगाती है। अत्यधिक संकोच और हिचकिचाहट मिटाकर जीवन में खुलकर आगे बढ़ने का विश्वास देती है।

लड़कों की ही तरह लड़कियों को भी समग्र शिक्षा मिलनी चाहिए। वह शिक्षा जिसमें उनकी रुचि हो, जो उनके भविष्य के लिए नई राह खोलती हो, साथ ही, उसे अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान देती हो। जो उसे मानवता की रक्षा करने का नैतिक साहस दे। अपनी भावना व्यक्त करने की भाषा सिखाए और अपने तथा अपने परिवार और समाज का कल्याण करने का विज्ञान भी।

इसके अलावा, जरूरी है कि उनकी शिक्षा में शारीरिक शिक्षा और आत्मरक्षा के गुर भी शामिल होने चाहिए।

समाज स्त्री और पुरुष दोनों से मिलकर बना होता है। जब तक दोनों को समान शिक्षा तथा अवसर न दिया गया, तब तक समाज में संतुलन नहीं कायम होगा और सही अर्थों में विकास नहीं हो सकेगा। दोनों पक्षों की मजबूती ही समाज में वास्तविक मजबूती ला सकती है

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